8TH SEMESTER ! भाग-22 ( Suicide~ आत्महत्या )
"बस जा रहा हूँ....रूम की सॉफ-सफाई भी करनी है ,वरना भाई रूम मे आकर मेरा हाल-चाल बाद मे पुछेगा उससे पहले मुझे बोलेगा कि चल पहले रूम सॉफ कर.. चमकायेगा वो अलग और घर मे फ़ोन करके माँ -बापू को खबर देगा वो अलग.. फिर उधर से भी लेक्चर मिलेगा...."
"आज तेरे रूम पर ही रुकने का प्लान है क्या उनका...."मेरे अंदर एक अलग ही खिचड़ी पाक रही थी जिसमे मिर्च मसाले डालते हुए नवीन बोला...
"नही, 4 बजे उनकी ट्रेन है..."
"आज रात मैं तेरे रूम पर रुकुंगा...."
"क्यूँ..."मेरे एकदम से कहने पर नवीन थोड़ा चौक सा गया,
"क्यूँ बे, तू आज उसके रूम पर क्यूँ रुकेगा...."अरुण ने मुझे बीच मे टोका... "डर गया क्या, हॉस्टल वाले सीनियर से...?"
"काम है कुछ..."
"गे... गे.... गे गे गे......"एक धुन मे गाते हुए अरुण ने कहा....
"आक्च्युयली मैं सोच रहा था कि ऐश जिस हॉस्पिटल मे है, वहाँ जाकर उसे देख आउ..."
"नवीन, ये लड़का तो गया हाथ से... अब भी उससे मिलना चाहता है, साला कही ये ना बोल दे की.. तुम कौन.. "मुस्कुराते हुए अरुण ने कहा"फिर मैं भी चलता हूँ..."
फिर क्या था हम तीनो ने तुरंत अपना बैग उठाया और निकल पड़े नवीन के रूम की तरफ....रास्ते भर मैने प्लान बनाया की मुझे हॉस्पिटल जाकर आक्च्युयली करना क्या है, लेकिन फिर याद आया कि हमे तो उस हॉस्पिटल का नाम तक नही मालूम जिसमे एश अड्मिट है..... फिर कैसे...?
"अबे तू किसलिए मेरे साथ आया है..."बाइक पर बैठे हुए ही मैने कोहनी से अरुण को मारा....
"तेरे साथ उस हॉस्पिटल मे जाउन्गा ,जहाँ एश एडमिट है..."
"घंटा जाएगा , पहले ये तो मालूम कर कि एश है किस हॉस्पिटल मे...."
कॉलेज से नवीन के रूम पहुचने मे सिर्फ़ आधा घंटा लगा,इधर नवीन रूम की सफाई मे लग गया और उधर मैं और अरुण उसके बिस्तर पर किसी महाराजा की तरह सवार होकर अपना प्लान बनाने लगे........
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"बी. एच. यू. को कॉल करता हूँ...."अरुण ने अपना मोबाइल निकालते हुए कहा.....bhu भी एश के पीछे पड़ा हुआ था इसलिए अरुण ने सोचा कि शायद उसे कुछ मालूम हो और हमारा दाँव एक दम फिट बैठा, उस साले bhu को मालूम था कि एश कहाँ अड्मिट है....
"काम हो गया...."कॉल डिसकनेक्ट करके अरुण ने कहा....
"कहाँ है वो और किस हालत मे है..."
"अपोलो मे है...."
"चल जल्दी से चलते है वहाँ...."मैं बिना कुछ सोचे समझे जाने के लिए उठ खड़ा हुआ, तभी नवीन जो रूम की सॉफ-सफाई मे लगा हुआ था वो बोला
"हेलो...किधर.."
"अपोलो..."
"बेटा ,अभी जाना है तो ऑटो मे जाओ ,क्यूंकी 3 बजे भाई को लेने रेलवे स्टेशन जाना है और वैसे भी अपोलो 2 कमरो का कोई छोटा हॉस्पिटल नही है जो मुँह उठा के पहुच गये...बेटा अंदर घुसने के लिए आइडी कार्ड लगता है....."हम दोनो के बढ़ते कदम वही रुक गये और अरुण के हाथ से नवीन ने बाइक की चाबी छीन कर कहा"पिछवाड़े मे लात मार के बाहर करेंगे वहाँ के सेक्यूरिटी गार्ड्स...."
"तो अब क्या करे...."
"4 बजे तक रुक ,भाई को रेलवे स्टेशन छोड़ने के बाद मैं भी साथ मे चलूँगा...."
उस दिन नवीन के भाई ने 1 घंटे बुरी तरह से बोर किया और नवीन के रूम को सॉफ देखकर खुश भी बहुत हुए, और जाते जाते हम तीनो को ठीक से पढ़ने की नसीहत भी दी और रात को पिज्जा खाने का पैसा देकर चले गए. 4:30 बजे के लगभग नवीन रेलवे स्टेशन से वापस रूम पर आया और हम तीनो अपोलो हॉस्पिटल पहुचे.....
"ले आ गया अपोलो , अब बोल अंदर जाने का क्या जुगाड़ है..."नवीन जब बाइक पार्क करके आया तो मैने उससे पुछा....
"मेरे इधर के एक अंकल यहाँ एडमिट है, उनको बाहर बुलाता हूँ...."कहते हुए नवीन ने मोबाइल निकाला और फिर अपने अंकल से बात की,...कुछ ही देर मे नवीन के अंकल बाहर आए, नवीन और उसके अंकल ने कुछ देर ही हेलो जैसी कयि पकाऊ बाते की और फिर हमे दो कार्ड देकर बोले कि तुम तीनो मे से सिर्फ़ दो लोग ही अंदर जा सकते हो....जाना तो तीनो को था इसलिए हम तीनो एक दूसरे का मुँह तकने लगे कि कौन अपनी कुर्बानी देगा....लेकिन जब कोई फ़ैसला नही हुआ तो अंकल ने हम तीनो को कुछ देर रुकने के लिए कहा और फिर जुगाड़ करके एक और आइडी कार्ड लेकर आए....
"नवीन, अपने अंकल से पूछ के देख कि ये एश को जानते है कि नही...."
"चूतिया है क्या...?."
"तू चूतिया, तेरा बाप....."इसके आगे मैने कुछ नही बोला और थोड़ी दूर मे खड़े नवीन के अंकल के पास गया, जो किसी से बात कर रहे थे.....
"अंकल, हमारे कॉलेज की एक लड़की ने सुसाइड करने की कोशिश की है,...उसे आप जानते है क्या....."
"ईशा.....?"
"ओ तेरी "अंदर ही अंदर खुश होते हुए मैने नवीन के अंकल से कहा"हाँ वही, जब यहाँ आए है तो सोचा कि उससे भी मिल लूँ...."
"वो मेरे करीबी दोस्त खुराना की एकलौती बेटी है , ईशा की सुसाइड अटेम्पट की खबर सुनकर मुझे भी दुख हुआ था, लेकिन अब वो ठीक है और यदि उससे मिलना चाहते हो तो 125 रूम नंबर. मे जाओ"
"थैंक यू अंकल"
वहाँ से खुशी-खुशी मैं, अरुण और नवीन के पास आया और उन्हे रूम नो. 125 मे चलने के लिए कहा,..
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गये थे बड़े आशिक़ बनकर, सोचा था किसी ना किसी बहाने उससे बात कर ही लूँगा , फिर उसका हाल चाल भी पूछ लूँगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ और ना ही इसके आस-पास कुछ हुआ.... जिस रूम मे ईशा एडमिट थी , हम तीनो उस रूम के बाहर चुप चाप खड़े अंदर झाँक रहे थे क्यूंकी अंदर झक्क मार के झाँकने के सिवा हम तीनो या फिर कहे कि मैं कुछ कर भी नही सकता था, क्यूंकी जो काम मुझे करना था वो रूम. नंबर. 125 मे कोई और कर रहा था, जिन अरमानो की गठरी बनाकर मैं यहाँ आया था वो खुल कर जिस रूम मे ईशा एडमिट थी, वो पुरे तरह रूम नो. 125 के बाहर बिखर चुकी थी , कानो मे एक बार फिर वही आवाज़ गूँजी जिसे मैं सुनना नही चाहता था, जिसे मैं बर्दाश्त नही कर सकता था.....
"प्यार ,मोहब्बत का चक्कर है भाई, तू उसे भूल जा...."
उस वक़्त अरुण भी चुप था और नवीन भी चुप चाप खड़ा था.....रूम के अंदर ईशा एक लड़के से बात कर रही थी, ईशा की आँख मे आँसू थे और उस लड़के की आँख भी हल्की नम थी, दोनो साले मेरी लव स्टोरी की धज्जिया उड़ा कर अपने लिए फॅमिली प्लान कर रहे थे.....जिस लड़के ने ईशा का हाथ पकड़ रखा था उसे मैने कॉलेज मे शायद कई बार देखा था, और यदि मेरा अंदाज़ा सही था तो वो यक़ीनन मेरा सीनियर है......
"इसका नाम गौतम है और ये सेकेंड ईयर मे है...."नवीन ने धीरे से कहा, लेकिन यदि वो ज़ोर से भी कहता तो कोई फरक नही पड़ता क्यूंकी वहाँ हमे सुनने वाला कोई नही था, जो बीमार थे वो तो अलॉट हुए रूम मे ही पड़े थे और जो उनके करीबी थे वो या तो अपने करीबी के साथ रूम मे थे या फिर बाहर की हवा खाने के लिए बाहर गये हुए थे...उस वक़्त हम तीनो रूम नंबर. 125 की खिड़की से अंदर देख रहे थे, हम तीनो ने देखा कि उस लड़के ने ईशा का हाथ अपने दोनो हाथो से थाम लिया और कुछ बोलने लगा...जिसे सुनकर ईशा की आँखे खुशी से छलक उठी....
उस वक़्त आँखो मे आँसू उसके भी थे ,पर दिल मेरा भी रोया था.....उस वक़्त अपने प्यार के सामने वो भी चुप थी ,उस वक़्त अपने प्यार के सामने चुप मैं भी था....उसके बगैर जीने की आदत ना तो उसे थी और उसके बगैर जीना मेरा भी मुश्किल होगा... इसका अंदाजा मुझे उसी समय उसे उस हालात मे, उस लड़के के साथ देख कर हो गया था.....
धीरे-धीरे मेरे कदम खुद बा खुद बाहर के लिए चल पड़े, अब सिचुयेशन बिल्कुल अलग थी, जहाँ कुछ देर पहले तक मैं यहा आने के लिए मरा जा रहा था वही अब मैं जल्द से जल्द यहाँ से दूर जाना चाहता था,जहाँ कुछ देर पहले मेरा दिल उसके दीदार के लिए उछल-उछल कर बेतहाशा हुआ जा रहा था वही अब मेरा दिल हताश होकर शांत बैठ गया था....हॉस्पिटल से बाहर आते वक़्त मैने कई लोगो को देखा, लेकिन फिर भी ना जाने क्यूँ ऐसा लग रहा था कि मैं वहाँ ,उस बड़े से आलीशान हॉस्पिटल मे बिल्कुल अकेला हूँ और कोई यदि वहाँ धीरे से भी कुछ बोलता तो उसकी आवाज़ जोरो से मेरे कानो मे चुभति....मुझे उस वक़्त ऐसा लगने लगा था जैसे की मैं बरसो से उस जगह क़ैद हूँ और वहाँ से निकलने की कोशिश कर रहा हूँ.......
"अरमान....."मेरे कंधे को पीछे से पकड़ कर अरुण ने मुझे ज़ोर से हिलाया...."कहाँ जा रहा है...."
"बाहर...."अपने चारो तरफ देखते हुए मैने अरुण से कहा,"क्यूँ कुछ हुआ क्या..."
"ये बाहर का रास्ता नही है...सामने देख तू उस रूम की तरफ जा रहा है जहाँ लावारिस डेथ बॉडीस को रखा जाता है...."
अरुण सच कह रहा था, मेरे सामने कुछ दूरी पर वही रूम था, मेरा सर घूमने लगा और उसके बाद आँखो के तार सुस्त पड़ने लगे... मैं उस वक़्त सोना चाहता था और मेरे मन मे ना जाने क्या सूझा जो मैं उसी रूम की तरफ चल पड़ा जहाँ मरे हुए लोगो के शरीर को रखा जाता था....मेरा दिमाग़ मेरे काबू मे नही था....मैं बस सोना चाहता था.... चैन की नींद... जो शायद अब मेरे नसीब मे नही थी और ना ही कभी होगी
"अबे रुक..."नवीन और अरुण ने मुझे पकड़ा लेकिन मैं उन्हे घसीटते हुए आगे बढ़ने लगा.....
"Wtf... इसे हो क्या गया.... मरवाएगा हमे..."अरुण मेरे कान के पास चिल्ला कर बोला और अचानक ही मैं होश मे आया.....
"मुझे क्यूँ पकड़ के रखा है बे..."उन दोनो को घूरते हुए मैने कहा,....
नवीन कुछ कहना चाहता था, लेकिन अरुण ने उसे इशारा करके शांत कर दिया और खुद बोला...."कुछ नही चल यहाँ से....
जहाँ एक तरफ ईशा ने सुसाइड करने की कोशिश की थी वही मेरे और ईशा के प्यार ने भी आज सुसाइड किया था... जो कि अभी शुरू तक नही हुआ था .....वो दिन मुझे आज भी याद है जब मैं बहक कर उस काले रूम की तरफ जा रहा था....इंजीनियर था इसलिए छोड़ दिया वरना यदि डॉक्टर होता तो दिमाग़ निकालकर उसमे मेरे उस दिन के बिहेवियर का कारण जरूर ढूंढता........ पर मुझे क्या पता की ये सब तो बहुत लम्बे खेल का एक छोटा सा हिस्सा है... और जो कुछ मेरे साथ हो चुका है... उससे भी भयानक आगे मेरे साथ होने वाला है... और जो खुद मै ही करूँगा.
"मंदिरो मे तुझको पाने की लाख मन्नते भी कर लेता मैं....
यदि मिल जाती तू मुझको.....
मस्जीदो मे बैठ कर सुबह-शाम आदाब भी कर लेता मैं....
यदि वहाँ दिख जाती तू मुझको....
बड़ी दिलकश और दिल्चश्प निकली तेरी गम-ए-जुदाई.....
ना तू मिली, ना मैं मंदिर गया.....
ना तू दिखी, ना मैं मस्जिद गया.....
लेकर हाथो मे प्याला तेरे गम -ए-शराब का...
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मैं वापस महफ़िल मे आकर बैठ गया......"
"थोड़ा बरफ डाल, साला बहुत कड़वा है...."वरुण ने अपनी ग्लास खाली करके कहा"ये क्या बे, तू तो सेनटी कर रहा है अरमान मुझको अपने ये स्टोरी सुनकर... बहुत बुरा अंत हुआ ये तो "
"अंत...?? ये तो सिर्फ शुरुआत है.. अंत तो इससे भी बुरा होगा "
Sana Khan
01-Dec-2021 02:06 PM
Good
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Barsha🖤👑
26-Nov-2021 05:28 PM
वाह बहुत खूबसूरत भाग
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Kaushalya Rani
25-Nov-2021 09:12 PM
Well pened
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